Thursday, October 17, 2024
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श्री हनुमान बाहुक का पाठ | Hanuman Bahuk Path in Hindi

Hanuman Bahuk ka Paath

श्री हनुमान बाहुक का पाठ | Hanuman Bahuk Path in Hindi

श्री हनुमान बाहुक एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है जिसे भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। यह पाठ जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं और समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। आइए जानते हैं हनुमान बाहुक के महत्व और इसके पाठ की विधि के बारे में विस्तार से।

हनुमान बाहुक किसकी रचना है?

हनुमान बाहुक की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। तुलसीदास जी ने इसे अपने जीवन के अंतिम दिनों में लिखा था जब वे घोर पीड़ा और संकट से गुजर रहे थे। उनकी भक्ति और श्रद्धा ने उन्हें भगवान हनुमान का अनुग्रह प्राप्त करने में मदद की, जिससे उनकी सभी पीड़ाएँ दूर हो गईं।

हनुमान बाहुक पाठ अर्थ सहित (Hanuman Bahuk Path in Hindi)

hanuman bahuk ka paath

हनुमान बाहुक में कुल 44 छंद होते हैं जिसमें भगवान हनुमान की महिमा का वर्णन किया गया है। प्रत्येक छंद में हनुमान जी की शक्ति, साहस, और भक्तों की रक्षा करने की क्षमता का वर्णन है। इस पाठ को पढ़ने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।

श्रीगणेशाय नमः

श्रीजानकीवल्लभो विजयते

श्रीमद्गोस्वामीतुलसीदासकृत

छप्पय

सिंधुतरन, सियसोचहरन, रबिबालबरन तनु

भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ।।

गहनदहननिरदहन लंक निःसंक, बंकभुव

जातुधानबलवानमानमददवन पवनसुव ।।

कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट

गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकलसंकटविकट ।।१।।

स्वर्नसैलसंकास कोटिरबितरुनतेजघन

उर बिसाल भुजदंड चंड नखबज्र बज्रतन ।।

पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन

कपिस केस, करकस लँगूर, खलदल बल भानन ।।

कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट

संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ।।२।।

झूलना

पंचमुखछमुखभृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्वसरिसमर समरत्थ सूरो

बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ।।

जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुलजलभरित जगजलधि झूरो

दुवनदलदमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ।।३।।

घनाक्षरी

भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मनअनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो

पाछिले पगनि गम गगन मगनमन, क्रम को भ्रम, कपि बालक बिहार सो ।।

कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो।

बल कैंधौं बीररस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ।।४।।

भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो

कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीररसबारिनिधि जाको बल जल भो ।।

बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो

नाईनाई माथ जोरिजोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ।।५

गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो

द्रोनसो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुकज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ।।

संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो

साहसी समत्थ तुलसी को नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ।।६

कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो

जातुधानदावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो ।।

कुम्भकरनरावन पयोदनादईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो

भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल त्रिलोक महाबल भो ।।७

दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो

सीयसोचसमन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन, लखन प्रिय प्रान सो ।।

दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो

ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ।।८

दवनदुवनदल भुवनबिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को

पापतापतिमिर तुहिनविघटनपटु, सेवकसरोरुह सुखद भानु भोर को ।।

लोकपरलोक तें बिसोक सपने सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को

राम को दुलारो दास बामदेव को निवास, नाम कलिकामतरु केसरीकिसोर को ।।९।।

महाबलसीम महाभीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को

कुलिसकठोर तनु जोरपरै रोर रन, करुनाकलित मन धारमिक धीर को ।।

दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को

सीयसुखदायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को ।।१०।।

रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि, हर मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो

धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु, पोषिबे को हिमभानु भो ।।

खलदुःख दोषिबे को, जनपरितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक सुदान भो

आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो ।।११।।

सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को

देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को ।।

जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को

सब दिन रुरो परै पूरो जहाँतहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को ।।१२।।

सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी

लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी ।।

केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की

बालकज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की ।।१३।।

करुनानिधान, बलबुद्धि के निधान मोदमहिमा निधान, गुनज्ञान के निधान हौ

बामदेवरुप भूप राम के सनेही, नाम लेतदेत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ।।

आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोकबेदबिधि के बिदूष हनुमान हौ

मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ।।१४।।

मन को अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं

देवबंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं

बीर बरजोर, घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं

बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं ।।१५।।

सवैया

जान सिरोमनि हौ हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो

ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ।।

साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहाँ तुलसी को चारो

दोष सुनाये तें आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तौ हिय हारो ।।१६।।

तेरे थपे उथपै महेस, थपै थिरको कपि जे घर घाले

तेरे निवाजे गरीब निवाज बिराजत बैरिन के उर साले ।।

संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले

बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ।।१७।।

सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से

तैं रनिकेहरि केहरि के बिदले अरिकुंजर छैल छवा से ।।

तोसों समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से

बानर बाज ! बढ़े खलखेचर, लीजत क्यों लपेटि लवासे ।।१८।।

अच्छविमर्दन काननभानि दसानन आनन भा निहारो

बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्नसे कुंजर केहरिबारो ।।

रामप्रतापहुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीरदुलारो

पापतें सापतें ताप तिहूँतें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो ।।१९।।

घनाक्षरी

जानत जहान हनुमान को निवाज्यौ जन, मन अनुमानि बलि, बोल बिसारिये

सेवाजोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये ।।

अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर मारिये

साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ।।२०।।

बालक बिलोकि, बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये

रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिये ।।

बड़ो बिकराल कलि, काको बिहाल कियो, माथे पगु बलि को, निहारि सो निवारिये

केसरी किसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये ।।२१।।

उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो सँभारिये

राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ।।

साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये

पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरि कै बदन बिदारिये ।।२२।।

राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये

मुदमरकट रोगबारिनिधि हेरि हारे, जीवजामवंत को भरोसो तेरो भारिये ।।

कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेमपब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै बिचारिये

महाबीर बाँकुरे बराकी बाँहपीर क्यों , लंकिनी ज्यों लातघात ही मरोरि मारिये ।।२३।।

लोकपरलोकहुँ तिलोक बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये

कर्म, काल, लोकपाल, अगजग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ।।

खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये

बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छुबेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये ।।२४।।

करमकरालकंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बकभगिनी काहू तें कहा डरैगी

बड़ी बिकराल बाल घातिनी जात कहि, बाँहूबल बालक छबीले छोटे छरैगी ।।

आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनी के पाले परैगी

पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसी की, बाँहपीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ।।२५।।

भालकी कि कालकी कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की

करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की ।।

पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी होहि बानि जानि कपि नाँह की

आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की ।।२६।।

सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है

लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ।।

तोरि जमकातरि मंदोदरी कढ़ोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महँतारी है

भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है ।।२७।।

तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्ररबिराहु की

तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति काहु की ।।

साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की

आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की ।।२८।।

टूकनि को घरघर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है

कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं मेरेहू भरोसो है ।।

इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है

सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि को सो है ।।२९।।

आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही सहि जाति है

औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ।।

करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो मानत इताति है

चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है ।।३०।।

दूत राम राय को, सपूत पूत बाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को

बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को ।।

एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को

थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ।।३१।।

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं

पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, राम दूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं ।।

घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं

क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ।।३२।।

तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घरघर के

तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ।।

तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हर के

तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये दास दुखी तोसो कनिगर के ।।३३।।

पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये , कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये

भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनी अवडेरिये ।।

अँबु तू हौं अँबुचर, अँबु तू हौं डिंभ सो , बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये

बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये ।।३४।।

घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है

बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूममूल मलिनाई है ।।

करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं ते उड़ाई है

खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है ।।३५।।

सवैया

राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो

पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ।।

बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो

श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो ।।३६।।

घनाक्षरी

काल की करालता करम कठिनाई कीधौं, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे

बेदन कुभाँति सो सही जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ।।

लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे

भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे ।।३७।।

पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुँह पीर, जरजर सकल पीर मई है

देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है ।।

हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारेही तें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है

कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है ।।३८।।

बाहुकसुबाहु नीच लीचरमरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं

राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं ।।

सुमिरे सहाय राम लखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं

तुलसी सँभारि ताड़का सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं ।।३९।।

बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं

परयो लोकरीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं ।।

खोटेखोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं

तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ।।४०।।

असनबसनहीन बिषमबिषादलीन, देखि दीन दूबरो करै हाय हाय को

तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को ।।

नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को

ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को ।।४१।।

जीओं जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को

तुलसी के दुहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँउ, जाके जिये मुये सोच करिहैं लरि को ।।

मोको झूटो साँचो लोग राम को कहत सब, मेरे मन मान है हर को हरि को

भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ।।४२।।

सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै

मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं जाने सुर कै ।।

ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै

कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों डारियत गाय खुर कै ।।४३।।

कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये

हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये ।।

माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये

तुम्ह तें कहा होय हा हा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिये ।।४४।।

हनुमान बाहुक का पाठ कब करना चाहिए?

हनुमान बाहुक का पाठ विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को करना उत्तम माना जाता है क्योंकि ये दिन भगवान हनुमान को समर्पित होते हैं। इसके अलावा, जब भी आप किसी गंभीर संकट, रोग, या नकारात्मक ऊर्जा का सामना कर रहे हों, तब भी इस पाठ को करना लाभकारी होता है।

हनुमान बाहुक का पाठ कितने दिन करना चाहिए?

हनुमान बाहुक का पाठ सामान्यतः 21 दिनों तक करना उत्तम माना जाता है। यदि किसी विशेष समस्या का समाधान चाहिए तो इसे 21 दिनों से अधिक भी किया जा सकता है। श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया पाठ अवश्य फलदायक होता है।

हनुमान बाहुक पाठ करने की विधि

  1. स्थान का चयन: पाठ के लिए एक स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें।
  2. स्नान और वस्त्र: स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  3. प्रार्थना: भगवान हनुमान की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
  4. संकल्प: हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि आप हनुमान बाहुक का पाठ करने जा रहे हैं।
  5. पाठ प्रारंभ: शुद्ध उच्चारण के साथ हनुमान बाहुक का पाठ करें।
  6. आरती: पाठ के बाद हनुमान जी की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

हनुमान बाहुक पाठ के लाभ

  1. सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति: इस पाठ को करने से शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  2. शत्रु नाश: यह पाठ शत्रुओं के नाश के लिए अत्यंत प्रभावी है।
  3. रोग नाश: हनुमान बाहुक का पाठ करने से सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है।
  4. मनोकामना पूर्ति: भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
  5. शांति और संतुष्टि: यह पाठ मानसिक शांति और संतुष्टि प्रदान करता है।

क्या महिलाएं हनुमान बाहुक का पाठ कर सकती हैं?

हाँ, महिलाएं भी हनुमान बाहुक का पाठ कर सकती हैं। हनुमान जी की भक्ति में लिंग का कोई भेदभाव नहीं है। सभी भक्त, चाहे वे स्त्री हों या पुरुष, हनुमान जी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए, महिलाएं भी श्रद्धा और विश्वास के साथ हनुमान बाहुक का पाठ कर सकती हैं।


श्री हनुमान बाहुक का पाठ भक्तों के जीवन में अद्वितीय सकारात्मकता और शक्ति का संचार करता है। श्रद्धा और भक्ति के साथ इसका पाठ करें और भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त करें। जय हनुमान!

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